Chaitra Navratri

चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) हिन्दू धर्म का एक पवित्र त्योहार है, जिसमें शक्ति की देवी माता दुर्गा की पूजा की जाती हैं और इसी दिन से हिन्दू धर्म के नववर्ष की शुरुआत भी होती है। नववर्ष के पहले दिन से ही माता दुर्गा की पूजा शुरू हो जाती है, जो नौ दिनों तक चलती है। इन नौ दिनों में हर दिन माता दुर्गा के नौ अलग – अलग स्वरूपों की पूजा की जाती है, जो इस प्रकार हैं – शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्रि।

इस साल चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) 22 मार्च से शुरू होगी, जो 30 मार्च तक चलेगी और कलश स्थापना 22 मार्च को सूर्योदय के साथ ही शुरू हो जाएगी। इस साल चैत्र नवरात्रि पर एक साथ चार ग्रहों का परिवर्तन देखने को मिलेगा, यह दुर्लभ संयोग 110 साल बाद देखने को मिलेगा। इस बार मां दुर्गा का आगमन नौके की सवारी के साथ होने वाली है, जिसे सुख-समृद्धि का कारक माना जाता है। चैत्र नवरात्रि के बारे में विस्तार से जानने के लिए इस आर्टिकल को शुरू से अंत तक पढ़िए।

हर साल नवरात्रि कितनी बार आती है? (How Many Times Does Navratri Come Every Year?)

हिन्दू पंचांग के अनुसार, हर साल चार नवरात्रि मनाई जाती है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि और दो प्रत्यक्ष नवरात्रि होती है। आषाढ़ और माघ महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि, गुप्त नवरात्रि कहलाती है, जबकि चैत्र और अश्विन महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि प्रत्यक्ष नवरात्रि कहलाती है।

चैत्र महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि को चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) या वासंतिक नवरात्रि भी कहा जाता है जबकि अश्विन महीने में मनाई जाने वाली नवरात्रि को शारदीय नवरात्रि भी कहा जाता है। चैत्र और अश्विन के महीने में मनाई जाने वाली प्रत्यक्ष नवरात्रि पर माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा की जाती है, जबकि आषाढ़ और माघ के महीने में मनाई जाने वाली गुप्त नवरात्रि पर माँ अम्बे की 10 महाविद्याओं की उपासना की जाती है।

साल 2023 में चैत्र नवरात्रि कब है? (When is Chaitra Navratri in the year 2023?)

इस साल चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की शुरुआत 22 मार्च 2023 से हो रही है, इसी दिन सूर्योदय से पहले कलश स्थापना की जाएगी। जबकि 30 मार्च 2023 को गुरुवार के दिन रामनवमी और 31 मार्च 2023 को इस पर्व का पारण किया जाएगा। चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की प्रतिपदा की तारीख 21 मार्च रात 11 बजकर 4 मिनट पर शुरू हो जाएगी। इसलिए 22 मार्च को सूर्योदय के साथ ही कलश स्थापना की शुरुआत हो जाएगी। चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) की तिथियों की सूचि आप निचे देख सकते हैं। 

22 मार्च 2023 – पहला दिन – मां शैलपुत्री पूजा, कलश स्थापना

23 मार्च 2023 – दूसरा दिन – मां ब्रह्मचारिणी पूजा

24 मार्च 2023 – तीसरा दिन – मां चंद्रघंटा पूजा

25 मार्च 2023 – चौथा दिन – मां कुष्मांडा पूजा

26 मार्च 2023 – पांचवां दिन – मां स्कंदमाता पूजा

27 मार्च 2023 – छठा दिन – मां कात्यायनी पूजा

28 मार्च 2023 – सातवां दिन – मां कालरात्री पूजा

29 मार्च 2023 – आठवां दिन – मां महागौरी पूजा

30 मार्च 2023 – नवां दिन – मां सिद्धीदात्री पूजा, रामनवमी

31 मार्च 2023 – दसवां दिन – पारण

माँ दुर्गा की सवारी का निर्धारण कैसे होता है? (How is Maa Durga’s Ride Determined?)

भागवत पुराण के अनुसार नवरात्रि में माँ दुर्गा के आगमन की सवारी नवरात्रि के शुरुआत के दिन से निर्धारित किया जाता है।अगर नवरात्रि की शुरुआत रविवार या सोमवार से होता है, तो माँ दुर्गा के आगमन की सवारी हाथी होता है। इसी तरह अगर नवरात्रि की शुरुआत शनिवार या मंगलवार के दिन से होता है, तो माँ दुर्गा के आगमन की सवारी घोड़ा होता है। अगर नवरात्रि की शुरुआत गुरुवार या शुक्रवार के दिन से होता है तो माँ दुर्गा के आगमन की सवारी डोली होता है और अगर नवरात्रि की शुरुआत बुधवार के दिन से होता है तो माँ दुर्गा के आगमन की सवारी नौका होता है।

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि के पहले दिन माँ दुर्गा अपनी सवारी पर विराजमान होकर, गणेश जी और भगवान कार्तिकेय के साथ पृथ्वी पर पधारती है और पूरी नवरात्रि यहाँ रहकर अपनी सवारी पर विराजमान होकर लौट जाती है। इस साल चैत्र नवरात्रि की शुरुआत 22 मार्च बुधवार के दिन से हो रही है, इसलिए इस साल माँ दुर्गा नौका पर विराजमान होकर पृथ्वी पर आएंगी। नौका की सवारी सुख-समृद्धि का वाहक होती है, जो मनुष्य के लिए एक शुभ संकेत है।

जिस तरह माँ दुर्गा के आगमन की सवारी का निर्धारण नवरात्रि शुरू होने वाले दिन से होती है, उसी तरह उनकी प्रस्थान की सवारी का निर्धारण नवरात्रि के समापन वाले दिन से होती है। जब नवरात्रि का समापन बुधवार या शुक्रवार के दिन होता है, तो उनके प्रस्थान करने की सवारी हाथी होता है। इस साल चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) का समापन 31 मार्च 2023, शुक्रवार को हो रही है, ऐसे में इस साल माँ दुर्गा हाथी की सवारी पर विराजमान होकर प्रस्थान करेंगी। ऐसे में इस साल मां दुर्गा का नौका पर आगमन और हाथी पर प्रस्थान करना दोनों ही मनुष्य के लिए शुभ संकेत है।

माँ दुर्गा के नौ स्वरुप (Nine Forms of Maa Durga)

नवरात्रि नौ दिनों तक चलने वाला पर्व है, और इन नौ दिनों में से प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के अलग-अलग स्वरूपों के लिए समर्पित हैं। उनका हर एक स्वरुप एक नवग्रह की स्वामिनी है और उनकी पूजा करने से इन ग्रहों से जुडी बाधाओं से मुक्ति मिलती है। यह नवग्रह है सूर्य, चन्द्रमा, मंगल, बुध, गुरु, शुक्र, शनि, राहू और केतु। आइए जानते हैं उनके नौ स्वरूपों के बारे में विस्तार से।

प्रतिपदा – मां शैलपुत्री

मां शैलपुत्री, माँ दुर्गा का पहला रूप है और इन्हें हेमावती और पार्वती के नाम से भी जाना जाता है। इसकी पूजा नवरात्रि की प्रतिपदा के दिन की जाती है। इसकी सवारी वृषभ है, इसलिए इन्हें वृषारूढ़ा भी कहा जाता है। माँ दुर्गा का यह रूप सदैव सुखद मुस्कान और आनंदमय मुद्रा में दिखाई देता है।

इन्हें चन्द्रमा के स्वामिनी के रूप में भी जाना जाता है और यह हमे चंद्रमा के कारण पड़ने वाले बुरे प्रभाव से बचाती है। यह अपने दाहिने हाथ में त्रिशूल और बाएं हाथ में कमल का फूल धारण की हुई रहती है। इसके लिए स्लेटी और सफेद रंग शुभ माना जाता है।

द्वितीया – मां ब्रह्मचारिणी

मां ब्रह्मचारिणी, माँ दुर्गा का दूसरा रूप है और इनकी आराधना नवरात्रि के दूसरे दिन की जाती है। इन्हें देवी अपर्णा के नाम से भी जाना जाता है। यह बिना सवारी के ही रहते है। यह अपने दाहिने हाथ में जपमाला और बाएं हाथ में कमंडल धारण की हुई रहती है। यह मंगल ग्रह की स्वामिनी है और इनके लिए लाल रंग शुभ माना जाता है।

तृतीया – मां चंद्रघंटा

माता चंद्रघंटा का यह रूप माता पार्वती का विवाहित रूप है। भागवान शिव से शादी के बाद माता पार्वती अपने माथे को अर्धचंद्र से सजाना शुरू कर देते है, जिसके कारण उन्हें माता चंद्रघंटा के रूप में जाना जाता है। यह माँ दुर्गा का तीसरा स्वरुप है और इनकी आराधना नवरात्रि की तृतीया को की जाती है।

इनकी सवारी बाघिन है और यह हमेशा शांत मुद्रा में दिखाई देते है। इसके दस हाथ हैं, जिनमें चार दाहिने हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल धारण की हुई रहती है जबकि पांचवां दाहिना हाथ वर्ण मुद्रा में होता है। चार बाएं हाथों में बाण, धनुष, कमल का फूल और जपमाला धारण की हुई रहती है जबकि पांचवां बायां हाथ अभय मुद्रा में होता है। माँ दुर्गा का यह रूप शुक्र ग्रह की स्वामिनी होती है और इनके लिए सफेद और नीला रंग शुभ होता है।

चतुर्थी – मां कुष्माण्डा

माता कूष्माण्डा, माता दुर्गा का चौथा स्वरुप है और इनकी आराधना नवरात्रि के चतुर्थी को किया जाता है। कूष्माण्डा का अर्थ होता है जिनकी उष्मा से इस ब्रह्मांड की रचना हुई है। माता कूष्माण्डा के पास सूर्य के सामान चमक और उष्मा है। इनकी सवारी शेरनी है और यह मंद मुस्कुराहट की मुद्रा में नजर आती है। इनके आठ हाथ हैं, इसलिए मां दुर्गा के इस स्वरुप को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है।

यह अपने दाहिने चार हाथों में कमंडल, धनुष, बाड़ा और कमल धारण की हुई रहती है जबकि बाएं चार हाथों में अमृत कलश, जपमाला, गदा और चक्र धारण की हुई रहती है। माता दुर्गा के इस रूप को सूर्य की स्वामिनी भी कहा जाता है, जो सूर्य को दिशा और ऊर्जा प्रदान करती है। इनके लिए लाल और पीला रंग शुभ माना जाता है।

पंचमी – मां स्कंदमाता

भगवान कार्तिकेय को स्कन्द के नाम से भी जाना जाता है। माता पार्वती भगवान स्कन्द की माता है, इसलिए उन्हें स्कंदमाता के नाम से भी जाना जाता है। यह देवी दुर्गा का पांचवां रूप है और नवरात्रि के पांचवें दिन इनकी पूजा की जाती है।

यह कमल के फूल पर विराजमान है, इसलिए उन्हें  देवी पद्मासना भी कहा जाता है। इनकी सवारी एक उग्र शेर है और यह बुध ग्रह की स्वामिनी है। इनके चार हाथ है, जिनमें से दो हाथों एक दाहिने और दूसरे बाएं हाथ में कमल का फूल धारण की हुई रहती है जबकि दूसरे दाहिने हाथ में भगवान स्कन्द को गोद में ली हुई रहती है और दूसरा बायां हाथ अभय मुद्रा में होता है। मां दुर्गा का यह रूप मातृत्व के लिए जाना जाता है।

षष्ठी – मां कात्यायनी

माता कात्यायनी, माता दुर्गा के नौ रूपों में सबसे विकराल रूप है और इस रूप को एक योद्धा के रूप में जाना जाता है। माता पार्वती ने महिषासुर के वध के लिए यह रूप धारण किया था। इनका जन्म ऋषि कात्या के यहां हुआ था, इसलिए इन्हें माता कात्यायनी कहा जाता है। यह माता दुर्गा का छठा स्वरुप है और इनकी आराधना नवरात्रि के छठी को की जाती है।

इनकी सवारी एक सुंदर शेर होता है और इन्हे गुरु ग्रह की स्वामिनी के रूप में भी जाना जाता हैं। इनके चार हाथ है, जिनमें अपने बाएं हाथों में कमल का फूल और तलवार धारण की हुई रहती है जबकि दाहिने हाथों में से एक हाथ अभय मुद्रा और दूसरा हाथ वरद मुद्रा में होता है।

सप्तमी – मां कालरात्री

माता पार्वती ने शुंभ और निशुंभ नाम के राक्षसों के वध के लिए माता कालरात्रि का रूप धारण किए थे। माता पार्वती के इस स्वरुप में शुभ और मंगलकारी शक्ति के लिए इन्हे देवी शुभंकरी के रूप में भी जाना जाता है।

यह मां दुर्गा का सांतवां स्वरूप है और इनकी आराधना नवरात्रि के सप्तमी के दिन की जाती है। इनकी सवारी गधा है और इन्हे शनि ग्रह की स्वामिनी के रूप में भी जाना जाता है। इनके चार हाथ होते है, जिनमें अपने बाएं हाथों में तलवार और लौह अस्त्र धारण की हुई रहती है। जबकि दाहिने हाथों में एक हाथ अभय मुद्रा में और दूसरा हाथ वरद मुद्रा में होता है।

अष्टमी – मां महागौरी

देवी महागौरी के गौर रंग के कारण इनकी तुलना चन्द्रमा, शंख और कुंद के सफेद फूल से की जाती है। माता के इसी दिव्य स्वरूप के कारण इन्हें देवी महागौरी के नाम से जाना जाता है। यह हमेशा सफेद वस्त्र धारण करती है, इसलिए इन्हें श्वेताम्बरधरा के नाम से भी जाना जाता हैं। यह माता पार्वती का आठवां रूप हैं और इनकी पूजा नवरात्रि के आठवें दिन की जाती है।

इनकी सवारी वृषभ हैं और इन्हें राहु ग्रह की स्वामिनी के रूप में जाना जाता हैं। इसके चार हाथ होते है, जिनमें दाहिने हाथों में से एक हाथ में त्रिशूल धारण की हुई रहती है, जबकि दूसरा हाथ अभय मुद्रा में होता है। बाएं हाथों में से एक हाथ में डमरू धारण की हुई रहती है जबकि दूसरा हाथ वरद मुद्रा में होता हैं।

नवमी – मां सिद्धीदात्री

माता सिद्धिदात्री भगवान शिव के बाएं आधे भाग से प्रकट हुई है, इसलिए भगवान शिव को अर्धनारीश्वर भी कहा जाता है। यह माता पार्वती के नौवां रूप है और नवरात्रि के नौवें दिन इनकी पूजा की जाती है। यह सभी प्रकार की सिद्धियों को प्रदान करती है। यह कमल पर विराजमान है और इन्हें केतु ग्रह की स्वामिनी के रूप में जाना जाता हैं।

चैती छठ पूजा कब है? (When is Chaiti Chhath Puja?)

छठ महापर्व साल में दो बार मनाई जाती है एक चैत्र महीने में और दूसरा कार्तिक महीने में। यह पर्व बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के साथ ही देश के कई प्रदेशों में मनाई जाती है। इस महापर्व में उगते हुए सूर्य के साथ ही, डूबते हुए सूर्य की भी उपासना की जाती है। इस साल छठ पूजा 25 मार्च 2023 को नहाय खाय के साथ शुरू होगी, जो 28 मार्च 2023 को सूर्योदय अर्घ्य (पारण) के साथ समाप्त होगी। छठ पूजा की तिथि की सूचि निचे दी गई है जो इस प्रकार है –

25 मार्च 2023 – नहाय खाय

26 मार्च 2023 – खरना

27 मार्च 2023 – संध्या अर्घ्य

28 मार्च 2023 – सूर्योदय अर्घ्य (पारण)

निष्कर्ष (Conclusion)

इस आर्टिकल में आपने चैत्र नवरात्रि (Chaitra Navratri) और माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों के बारे जाना। आशा करते है कि आपको यह जानकारी अच्छी लगी होगी, इसी तरह की नई अपडेट के लिए NayisochOnline के अन्य आर्टिकल को भी पढ़ सकते है। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।

माता दुर्गा के नौ स्वरूपों में बारे में जानने के लिए निचे दिए लिंक पर क्लिक करें।

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