Holi Kab Hai

होली का नाम सुनते ही हमारे चेहरे पर खुशी का भाव आ जाता है और हम सोचने लगते है कि इस साल Holi Kab Hai क्योंकि इस त्योहार से हर किसी की कुछ न कुछ यादें जुड़ी होती हैं। भारत को त्योहारों का देश कहा जाता है। यहां विभिन्न धर्मों के लोग त्योहारों को बड़े हर्षोल्लास और भाईचारे के साथ मनाते हैं। ऐसे नजारे सिर्फ भारत में ही देखने को मिलते हैं, जो हमारे देश को दूसरे देशों से अलग बनाता है।

भारत में बहुत सारे त्योहार मनाये जाते है और हर त्योहार का अपना एक अलग ही महत्व होता है। होली भी इन त्योहारों में एक पवित्र त्योहार है और यह लोगो को प्रेम और भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देती है। हमलोग हर साल होली को बहुत ही धूम धाम से मनाते है, लेकिन क्या आपको पता है कि होली क्यों मनाई जाती है, यह हर साल किस दिन मनाई जाती है, साल 2023 me Holi Kab Hai, Holika Dahan Kab Hai और इस पर्व का हमारे जीवन में क्या महत्व है। इन सब बातों को विस्तार से जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़िए।

होली कब मनाई जाती है? (When is Holi Celebrated?)

होली को “रंगों का त्योहार” कहा जाता है और यह हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। यह फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है और इस पर्व को शीतकाल की समाप्ति और वसंत ऋतु के आगमन के रूप में मनाया जाता है। यह त्योहार बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और यह आपसी मतभेदों को दूर कर प्रेम और भाईचारे के साथ रहने की प्रेरणा देता है।

होली क्यों मनाई जाती है? (Why is Holi Celebrated?)

होली को मनाने के पीछे कई कथाएं प्रचलित हैं जिनमें से प्रह्लाद और होलिका की कथा बहुत प्रचलित है। आइए जानते हैं कुछ लोकप्रिय कथाएं।

प्रह्लाद और होलिका की कहानी (Story of Prahlad and Holika)

विष्णु पुराण के अनुसार प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप ब्रह्मा जी से वरदान प्राप्त करने के बाद अपने आप को सबसे शक्तिशाली समझने लगता है और लोगों से अपनी पूजा और आराधना करने को कहता है। लेकिन उसका पुत्र प्रह्लाद विष्णु की आराधना करता है। यह बात हिरण्यकश्यप को पसंद नहीं आती है और वह प्रह्लाद को मारने के लिए बहुत सारे प्रयास करता है, लेकिन उसे इस काम में सफलता नहीं मिलती। इस काम में उसकी बहन होलिका उसका साथ देती है।

कहा जाता है कि होलिका को एक दिव्य वस्त्र मिला था, जिससे वह आग में भी नहीं जल सकती थी। वह प्रह्लाद को अपने गोद में लेकर आग में बैठ जाती है। भगवान की कृपा से वह दिव्य वस्त्र उड़कर प्रह्लाद के पास आ जाता है, जिससे प्रह्लाद को आग में कुछ नहीं होता, जबकि होलिका आग में जल जाती है। इसलिए इस दिन प्रह्लाद के जीवित बचने की खुशी में बुराई पर अच्छाई की जीत के लिए होली का त्योहार मनाया जाता है।

राधा और कृष्ण की कहानी (Story of Krishna and Radha)

होली का यह त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कथा से भी सम्बंधित है। एक कथा के अनुसार जब भगवान कृष्ण ने दुष्टों का संहार कर वृंदावन लौटे थे। इस ख़ुशी के मौके पर वृंदावन में कृष्ण जी ने राधा और गोपियों के साथ होली खेली थी। तभी से ही होली का त्योहार मनाया जाने लगा। आज भी वृंदावन की होली बहुत लोकप्रिय है। सूरदास जी ने भी पदों के माध्यम से कृष्ण और राधा की होली खेलने का बड़ा ही मनोरम दृशय प्रस्तुत किया है। भक्त लोग भगवान के साथ एक अलग रंग में ही रंग जाते है। यह भगवान के प्रति प्रेम, भक्ति और विश्वास का रंग होता है।

कामदेव और भगवान शिव की कथा (Story of Kamdev and Lord Shiva)

पार्वती जी भगवान शिव से विवाह करना चाहती थी, लेकिन भगवान शिव तपस्या में लीन थे। कामदेव पार्वती की सहयता के लिए पुष्प बाण चलाते है, जिससे भगवान शिव की तपस्या भंग हो जाती है। शिवजी क्रोध में आकर अपनी तीसरी आँख खोल देते है, जिससे कामदेव भस्म हो जाते है। कामदेव की पत्नी रति विलाप करने लगती और कामदेव को पुनर्जीवित करने के लिए भगवान शिव से प्रार्थना करने लगती हैं। भगवान शिव कामदेव को पुनर्जीवित कर देते है। कामदेव के पुनर्जीवित होने की ख़ुशी में होली का त्योहार मनाया जाता है। इसलिए इस दिन लोक संगीत में रति के विलाप भी सुनने को मिलते है। उधर पार्वती की आराधना सफल हो जाती है। भगवान शिव उन्हें अपनी पत्नी के रूप स्वीकार करते है। इस तरह से होली को प्रेम के विजय के रूप में भी मनाया जाता है।

पूतना और कंस की कथा (Story of Putna and Kansa)

कंस को एक भविष्वाणी से यह पता चलता है कि वासुदेव और देवकी का आठवां पुत्र उसके विनाश का कारण बनेगा। तब उसने वासुदेव और देवकी को कारागार में बंद कर देता है। कंस देवकी के सात पुत्रों को मार देता है, लेकिन जब आठवें पुत्र के रूप में भगवान कृष्ण जन्म लेते हैं, तो उनकी लीला से कारागार का द्वार खुल जाता है और वासुदेव उन्हें यशोदा और नन्द के यहाँ रख आते है और उनकी नवजात कन्या को अपने साथ ले आते है। कंस जब इस कन्या को मारना चाहता है तो वह अदृशय हो जाती और एक आकाशवाणी होती है कि तुम्हें मारने वाला गोकुल में जन्म ले चूका है।

कंस उस दिन गोकुल में जन्म लेने वाला सभी बच्चो को मारने की योजना बनाता है और वह इस काम में पूतना नामक राक्षसी का सहारा लेता है। पूतना एक सुन्दर स्त्री का रूप धारण करती है और स्तनपान के वहाने बच्चो को विषपान कराती है। कृष्ण उनकी सच्चाई को समझ लेते है और वह पूतना का वध कर देते है। उस दिन फाल्गुन का पूर्णिमा का दिन था इसलिए इस दिन पूतना की वध की ख़ुशी में होली मनाई जाने लगी।

धूलंडी क्यों मनाई जाती है? (Why is Dhulandi Celebrated?)

होलिका दहन के अगले दिन धूलंडी मनाई जाती है। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग लगाते है और रंगों के इस त्योहार को बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। धुलंडी मनाने के पीछे कुछ दंतकथाएं हैं। कहा जाता है की द्धापर युग में भगवान विष्णु ने धूलिवंदन किये थे। इसमें लोग एक दूसरे को प्रेम पूर्वक धूल लगाते थे। आज लोग इसे अलग-अलग रंगों के रूप में एक-दूसरे को लगाते हैं। पहले लोग धूलंडी मानाने के लिए चिकनी या मुल्तानी मिट्टी का इस्तेमाल करते थे, जो शरीर के लिए फायदेमंद होती थी। लेकिन आज के समय लोग इन मिट्टी की जगह रंगो से धूलंडी मनाना ज्यादा पसंद करते है।

पहले होली के रंगो को टेसू या पलाश के पेड़ से बनाए जाते थे, जो त्वचा के लिए भी अच्छे होते थे क्योंकि इसमें किसी तरह का केमिकल का इस्तेमाल नहीं होता था। आजकल होली में जिस तरह के रंगो का इस्तेमाल किया जाता है, उसमे केमिकल्स का इस्तेमाल बहुत ज्यादा मात्रा में होता है। जिसके कारण बहुत से लोग इस त्योहार को मनाने से बचते है।

होली का त्यौहार कैसे मनाया जाता है? (How is the Festival of Holi Celebrated?)

होली फाल्गुन महीने के पूर्णिमा को मनाई जाती है। यह हिन्दुओं का एक पवित्र त्योहार है और बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। होली का त्योहार मुख्य रूप से दो दिनों तक मनाई जाती है। इसकी शुरुआत होलिका दहन के साथ ही हो जाती है। फाल्गुन महीने के पूर्णिमा के दिन शाम को होलिका दहन किया जाता है। इसके लिए कुछ समय पहले से ही खुले जगह पर लकड़ी और उपले को इकठा किया जाता है और इसे होलिका दहन के रूप में इसे जलाया जाता है। इस आग में गेहूं, जौ और चने की बालियां पकाई जाती हैं। फिर इसे साथ में मिलकर खाते है और कुछ को अग्नि में भी भेंट किया जाता है।

इसके अगले दिन सुबह में लोग एक दूसरे को मिट्टी लगाते है, कहीं-कहीं इसे  कपडा फाड़ होली या लठमार होली के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन ढोल बजाकर होली के गीत गाए जाते है। लोग एक दूसरे को रंग और अबीर लगाते है। इस दिन बच्चों से लेकर बूढ़ों तक होली के जश्न में डूब जाते है। लोग सभी तरह के गीले सिकवे को भूलकर एक दूसरे को गले लगाते है।

इस दिन हर जगह आपको लोगों की टोलियां देखने को मिल जाती है, जो रंग-बिरंगे कपडे पहने, होली के गानों पर नाचते दिख जाते है। इस दिन बच्चे अलग की मौज में रहते है, वह भी रंग और अबीर खेलने में मशगूल रहते है और होली के कई दिन पहले से ही एक अच्छी पिचकारी की जिद होती है। इस दिन तरह-तरह के पकवान बनाए जाते है, जैसे – पुआ, दहीवाड़ा, गुजिया इत्यादि और लोग एक दूसरे को अपने घर आमंत्रित करते है। इस तरह से यह त्योहार हर्ष और उल्लास के साथ ही प्रेम और भाईचारे का भी प्रतीक है।

सुरक्षित होली कैसे मनाएं? (How to Celebrate Safe Holi?)

पहले जब लोग एक-दूसरे को होली की शुभकामनाएं देते थे तो लोग कहते थे “Happy Holi” लेकिन आज जब भी कोई होली की बधाई देता है तो वह कहते है “Happy and Safe Holi” ऐसा इसलिए क्योंकि पहले होली खेलने के लिए जिस रंग का इस्तेमाल किया जाता था, उसमे किसी तरह के केमिकल का इस्तेमाल नहीं किया जाता था। ये पूरी तरह से प्राकृतिक रंग होते थे, जो किसी पौधे या पेड़ की छाल से बने होते थे।

इस रंग के इस्तेमाल से हमारी त्वचा को कोई नुकसान नहीं होता था। लेकिन आजकल बाजार में बिकने वाले रंग केमिकल युक्त होते हैं। इसके इस्तेमाल से हमारी त्वचा को नुकसान पहुंच सकता है या किसी भी तरह की एलर्जी हो सकती है। अगर गलती से यह रंग आपकी आंखों में चला जाए तो आपकी आंखों की रोशनी भी जा सकती है। इस तरह से यह रंग सेहत के लिए काफी खतरनाक होता है। साथ ही यह त्योहार प्यार और भाईचारे का प्रतीक है, इसलिए किसी को भी बिना उनकी मर्जी के रंग न लगाएं। प्यार और भाईचारे से एक दूसरे को रंग और अबीर लगाएं।

इस दिन लोग होली के नाम पर शराब, भांग इत्यादि जैसे नशीली चीजों का सेवन करते है। यह भी स्वास्थ के लिए अच्छी चीज नहीं है। इसलिए इस पावन मौके पर नशीली चीजों का सेवन ना करे। होली का पर्व बुराई पर अच्छाई का प्रतीक है तो इस शुभ अवसर पर लोगो के बीच प्रेम, स्नेह भाईचारे को बढ़ावा दे। अगर किसी तरह का मनमुटाव, लड़ाई-झगड़ा है तो उसे खत्म करने की कोशिश करें। तभी यह पर्व मनाना सार्थक होगा।

होली का महत्व (Importance of Holi)

इस त्योहार का सामाजिक दृष्टिकोण से एक अलग ही महत्व है। इसे बुराई पर अच्छाई का प्रतीक माना जाता है, मतलब बुराई कितनी ही बड़ी क्यों न हो, वह अच्छाई के सामने हमेशा पराजित होती है। यह पर्व आपसी प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देता है। यह त्योहार आपसी मतभेदों को मिटाकर आपस में मिलजुल रहने की प्रेरणा देता है। यह समाज में फैली तमाम बुराइयों को हमें एकजुट होकर दूर करने की प्रेरणा देता है।

FAQ (अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न)

होली कब मनाई जाती है?

यह हर साल फाल्गुन महीने की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है। इस पर्व की शुरुआत होलिका दहन के साथ ही हो जाती है। फाल्गुन महीने की पूर्णिमा की शाम को होलिका दहन होता है और अगले दिन होली खेली जाती है। इस दिन लोग एक दूसरे के साथ रंग और अबीर खेलते हैं।

प्रह्लाद के माता और पिता का क्या नाम था?

प्रह्लाद की माता का नाम का कयाधु और पिता का नाम हिरण्यकश्यप था। हिरण्यकश्यप और होलिका के पिता “ऋषि कश्यप” थे।

साल 2023 में होली कब है? (साल 2023 me Holi Kab Hai)

हर साल फाल्गुन मास की पूर्णिमा के दिन होली का त्योहार मनाया जाता है। इस तरह से इस साल 2023 में 07 मार्च 2023 को होलिका दहन मनाई जाएगी और इसके अगले दिन 08 मार्च 2023 को होली मनाई जाएगी। इस दिन लोग एक दूसरे को रंग और अबीर लगाते है।

निष्कर्ष (Conclusion)

होली को रंगो का त्योहार के रूप में जाना जाता है और यह बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है। इसलिए इस पर्व को मनाने का उदेश्य आपसी कलश और झगडे को ख़त्म कर प्रेम और भाईचारा को बढ़ावा देना होना चाहिए। इस पवित्र त्योहार के मौके पर केमिकल युक्त रंगो का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए और नशीली चीजों के सेवन से दूर रहना चाहिए। इस त्योहार को सादगी और भाईचारे के साथ मनाना चाहिए।

इस आर्टिकल में आपने जाना कि होली क्यों मनाई जाती है, साल 2023 me Holi Kab Hai, Holika Dahan Kab Hai और इस पर्व का हमारे जीवन में क्या महत्व है। उम्मीद करते है कि होली से सम्बंधित यह लेख आपको पसंद आया होगा। ऐसी ही नई जानकारी के लिए इस NayiSochOnline के दूसरे आर्टिकल को भी पढ़ सकते है। इस लेख को अंत तक पढ़ने के लिए आपका धन्यवाद।

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