Maa Chandraghanta ki Katha in Hindi

Maa Chandraghanta ki Katha in Hindi: माता चन्द्रघंटा, माँ दुर्गा का तीसरा स्वरूप है और इनकी आराधना नवरात्री के तीसरे दिन की जाती है। इनकी ललाट अर्धचंद्र से सुसज्जित होता है, जो एक घंटे के समान दिखता है, इसलिए इन्हें माता चन्द्रघंटा के रूप में जाना जाता है। इनकी पूजा करने से हमारे अंदर वीरता, निर्भयता, सज्जनता और विनम्रता की वृद्धि होती है। इस आर्टिकल में हम माता चन्द्रघंटा की कथा (Maa Chandraghanta ki Katha in Hindi) के बारे में विस्तार से जानेंगे। माता चन्द्रघंटा के स्वरुप, कथा, प्रिय रंग और पूजन विधि के बारे में जानने के लिए इस आर्टिकल को अंत तक पढ़िए।

माता चन्द्रघंटा का स्वरुप (Form of Maa Chandraghanta)

भगवान शिव से विवाह के बाद माता पार्वती अपने ललाट को अर्धचंद्र से सजाना शुरू कर देती है। यह अर्धचंद्र एक घंटे के समान प्रतीत होता है, इसलिए इन्हें माता चन्द्रघंटा के नाम से भी जाना जाता है। माता चन्द्रघंटा का रंग सोने के समान चमकीला है। इनके दस हाथ है, जिसमें दाहिने चार हाथों में त्रिशूल, गदा, तलवार और कमंडल धारण की हुई रहती है, जबकि पांचवां हाथ वर्ण मुद्रा में रहता है। बाएं के चार हाथों में बाण, धनुष, कमल का फूल और जपमाला धारण की हुई रहती है जबकि पांचवा बायां हाथ अभय मुद्रा में रहता है।

इनकी सवारी सिंह है और इन्हे शुक्र ग्रह की स्वामिनी कहा जाता है। इनका प्रिय रंग सफ़ेद और नीला होता है। इनका चेहरा शांत और सौम्य मुद्रा में रहता है और उनके चेहरे पर सूर्य की आभा फैल रही होती है। इनका ललाट अर्ध चंद्रमा से सजा हुआ घंटे के आकार जैसा प्रतीत होता है। ऐसा प्रतीत होता है कि सिंह पर विराजमान माता चन्द्रघंटा युद्ध के लिए अभिमुख है। इनकी सवारी सिंह पराक्रम और निर्भयता का प्रतीक है।

माता चन्द्रघंटा की कथा (Maa Chandraghanta ki Katha in Hindi)

धार्मिक ग्रंथों के अनुसार एक समय देवताओं और असुरों के बीच भीषण युद्ध हुआ। असुरों के तरफ से महिषासुर था, जबकि देवताओं के तरफ से राजा इंद्र थे। महिषासुर इस युद्ध में विजयी हुआ और उसने राजा इंद्र का सिंहासन हासिल कर लिया और पुरे स्वर्ग लोक पर राज करने लगा। महिषासुर ने इंद्र, चंद्र, सूर्य और अन्य देवताओं के अधिकार को अपने वश में कर लिया था।देवतागण स्वर्ग लोक को छोड़कर पृथ्वी पर जाने के लिए विवश हो गए थे। इससे सभी देवतागण अपनी परेशानी को लेकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश के पास गए।

देवतागण की व्यथा सुनकर ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बहुत गुस्सा आया। उनके गुस्से की वजह से उनके मुखों से ऊर्जा उत्पन्न हुई और देवताओं के शरीर से निकली ऊर्जा से जाकर मिल गई, जिसके परिणामस्वरूप एक देवी का अवतरण हुआ। उन्हें भगवान शिव ने अपना त्रिशूल और भगवान विष्णु ने अपना चक्र प्रदान किया। इसी प्रकार अन्य देवताओं ने भी माता के हाथों को अस्त्र शस्त्र से सजा दिया।सूर्य ने अपना तेज और तलवार दिया और हिमालय ने वाहन के रूप में सिंह दिया। इस प्रकार उनका नाम चंद्रघंटा पड़ा।

इसके बाद माता चंद्रघंटा, सिंह पर विराजमान होकर युद्ध के लिए तैयार हो गयी। उनके इस विकराल रूप को देखकर महिषासुर समझ गया कि उसका काल आ गया है। माता चंद्रघंटा ने महिषासुर और अन्य दानवों का संहार किया। इस तरह से उन्होंने सभी देवताओं को असुरो से मुक्ति दिलाई।  

माता चन्द्रघंटा का प्रिय भोग (Favorite Bhog of Maa Chandraghanta)

माँ चन्द्रघंटा का प्रिय भोग दूध और दूध से बनी चीज जैसे खीर इत्यादि है। उन्हें सफ़ेद रंग की चीज जैसे मखाना और दूध का खीर इत्यादि का भोग लगाना चाहिए । इसके अलावा शहद का भी भोग लगाया जा सकता है। इस दिन भूरे रंग के कपड़े पहनना शुभ माना जाता है। इनका वाहन सिंह है, इसलिए गोल्डन रंग का वस्त्र धारण करना भी शुभ माना जाता है।  

माता चन्द्रघंटा की पूजन विधि (Worship Method of Maa Chandraghanta)

  • नवरात्री के तीसरे दिन सूर्योदय से पूर्व स्नान करे और सफेद वस्त्र धारण करें।
  • उसके बाद चौकी पर माता चंद्रघंटा की प्रतिमा स्थापित करें।
  • इसके बाद माता चन्द्रघंटा का आह्वाहन करें।
  • उन्हें फल और फूल अर्पित करें।  
  • भोग में दूध से बनी चीज जैसे खीर या मिष्ठान चढ़ाएं।
  • उसके बाद घी के दिए जलाएं और माता चन्द्रघंटा के मन्त्रों का जाप करें।

माता चन्द्रघंटा की पूजा का क्या महत्व है? (What is the Importance of Worshiping Maa Chandraghanta?)

माँ चन्द्रघंटा की पूजा करने से मणिपुर चक्र जागृत होता है। मणिपुर चक्र का मतलब नाभि चक्र होता है। यह नाभि चक्र हमारे शरीर के बीच में स्थित होता है, जो पुरे शरीर के ऊर्जा का केंद्र है। नाभि चक्र की ऊर्जा कम होने से शरीर में कई तरह के रोग होने लगते है जैसे – मधुमेह, पाचन तंत्र से सम्बंधित रोग इत्यादि। माता चन्द्रघंटा की आराधना करने से ये सब रोग दूर हो जाते है। इसके अलावा इनकी पूजा करने से हमारे अंदर अत्मविश्वास, सज्जनता और विनम्रता की भावना जागृत होता है और अनावश्यक भय और अवसाद दूर हो जाता है।

ज्योतिष शास्त्र के अनुसार इनकी आराधना करने से शुक्र ग्रह के दोष दूर होते हैं। शुक्र ग्रह को विलासिता का ग्रह माना जाता है। इस ग्रह के दोष दूर होने से व्यक्ति को प्रेम, अच्छे सम्बन्ध, आर्थिक लाभ और जीवन में उन्नति प्राप्त होती है। माता चन्द्रघंटा की कृपा से दांपत्य जीवन भी सुखमय होता है। इनकी घंटे की ध्वनि नकरात्मक चीजों से मुक्ति दिलाती है और हमारे शरीर में एक अलौकिक ऊर्जा का संचार करती है। 

निष्कर्ष (Conclusion)

इस आर्टिकल में हमने माता चन्द्रघंटा की कथा (Maa Chandraghanta ki Katha in Hindi) के बारे में विस्तार से जाना। उंम्मीद करते है माता चन्द्रघण्टा के बारे में यह जानकारी आपको अच्छी लगी होगी। इसी तरह की जानकारियों के लिए आप हमारे इस ब्लॉग के दूसरे आर्टिकल को भी पढ़ सकते है। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ने के लिए धन्यवाद।

माता दुर्गा के नौ स्वरूपों में से अन्य स्वरूप के बारे में जानने के लिए निचे दिए गए लिंक पर क्लिक करे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *